जबलपुर दर्पणमध्य प्रदेश

निजी स्कूलों की मनमानी पर लगाम

31.51 करोड़ की अवैध फीस वसूली का खुलासा

जबलपुर दर्पण। शिक्षा के क्षेत्र में जबलपुर जिले में बड़ी गड़बड़ी सामने आई है। पांच प्रमुख निजी स्कूलों ने सत्र 2024-25 में नियमों को नजरअंदाज कर 52,480 छात्रों से 31.51 करोड़ रुपये की अवैध फीस वसूली। कलेक्टर दीपक सक्सेना के निर्देश पर गठित जांच समिति ने यह खुलासा किया है। अब जिला प्रशासन ने इन स्कूलों को 30 दिनों के भीतर यह राशि लौटाने और दो-दो लाख रुपये का जुर्माना भरने का निर्देश दिया है।

जांच में क्या हुआ खुलासा?

जांच रिपोर्ट के अनुसार, इन स्कूलों ने नर्सरी से लेकर 12वीं तक के छात्रों से फीस के नाम पर मनमानी की। निर्धारित फीस से अधिक वसूली करने वाले इन स्कूलों ने शिक्षा नियमों का खुला उल्लंघन किया। जांच समिति ने प्रत्येक स्कूल पर ₹2 लाख का जुर्माना भी लगाया है, जिसे तीन दिनों के भीतर जमा करना होगा।

जांच में दोषी पाए गए स्कूलों का ब्योरा

  1. सेंट अगस्टीन स्कूल, लम्हेटाघाट
    • छात्र संख्या: 8,240
    • अवैध वसूली: ₹4.76 करोड़
  2. सेंट्रल एकेडमी सीनियर सेकेंडरी स्कूल, विजय नगर
    • छात्र संख्या: 8,330
    • अवैध वसूली: ₹3.86 करोड़
  3. एमजीएम हायर सेकेंडरी स्कूल, हाथीताल
    • छात्र संख्या: 13,149
    • अवैध वसूली: ₹7.19 करोड़
  4. आदित्य कान्वेंट स्कूल
    • छात्र संख्या: 10,075
    • अवैध वसूली: ₹5.03 करोड़
  5. अशोका स्कूल (आंकड़े पूर्ण नहीं)

कलेक्टर के निर्देश

कलेक्टर दीपक सक्सेना ने स्पष्ट किया है कि इन स्कूलों को 30 दिनों के भीतर छात्रों से ली गई अवैध राशि वापस करनी होगी। जुर्माने की राशि तीन दिनों में जमा करने का निर्देश भी दिया गया है। प्रशासन इस मामले में स्कूलों की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखेगा।

अभिभावकों की प्रतिक्रिया

अवैध वसूली की इस घटना ने अभिभावकों में गुस्सा और चिंता पैदा कर दी है। उनका कहना है कि शिक्षा के नाम पर हो रही लूट को रोकने के लिए प्रशासन को सख्त कदम उठाने चाहिए।

शिक्षा का व्यावसायीकरण बड़ा सवाल

इस घटना ने शिक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता और नियमों के पालन की आवश्यकता को उजागर किया है। जिला प्रशासन की यह कार्रवाई न केवल अवैध गतिविधियों पर रोक लगाएगी, बल्कि शिक्षा क्षेत्र में सुधार का मार्ग भी प्रशस्त करेगी।

यह कदम छात्रों और अभिभावकों के लिए राहतभरा है और निजी स्कूलों को यह संदेश देता है कि शिक्षा को व्यावसायिक लाभ का साधन नहीं बनने दिया जाएगा।

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