संपादकीय/लेख/आलेख
युवाओं का नशे में लिप्त होना चिंताजनक !
@ आशीष राय संपादकीय सलाहकार जबलपुर दर्पण
आज एक चिंता का विषय भी है। इस नशे में हमारा स्कूली युवा भी सम्मिलित हो गया जिसकी कल्पना करने से ही मानो ऐसा लगता है कि कोई पहाड़ टूट गया हो। जिस युवा से अनेकानेक देश को महत्वकांक्षा रहती है। पर जब वही युवा इस नशे की गर्त में समाहित होता नजर आ रहा है तो बड़ा अफ़सोस होता है।
इसका विचार करने पर ही लगता है कि जो युवा स्कूल, कॉलेज के लिए गया है न जाने किन परिस्थितियों में उनके माता-पिता उनकी फीस,पुस्तक,किताब,डिरेस,बैग इत्यादि का खर्च की व्यवस्था कर पा रहे हैं। बाबजूद उन्हें स्कूल, कॉलेज भेज रहे हैं। जिसके पीछे इनको उद्देश्य है कि हमारा बेटी या बेटा बड़ा होकर हमारा नाम रोशन करेगा अगर नाम रोशन ना कर सके तो हमारे बुढ़ापे का आसरा बनेगा, हमें दो वक्त की रोटी खिलाएगा। लेकिन वह उज्जवल भविष्य न जाने स्कूल फीस के नाम से पैसा लेकर, काफी पुस्तक खरीदने के नाम से पैसा लेकर, उससे नशे की चीज खरीद रहा है मानो एक बिकराल बीमारी, लत खरीद रहा है जो उसके उज्जवल भविष्य पर काला कलंक लगा सकती है। एक समय था जब स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आवाहन किया था, कि वह है देश के पिछड़ेपन, अशिक्षित, भुखमरी, गरीबी लोगों की मदद के लिए आगे आए उन्हें विश्वास था कि युवा ही यह कर सकता है। उन्हें भी युवाओं पर इतना भरोसा था, जिस भी सभा में लोगों को संबोधित करते युवाओं के लिए जरूर कुछ ना कुछ कहते। वह जानते थे युवाओं जो मन में ठान ले तो है वह भारत ही नहीं विश्व को हिला सकते हैं। आज विवेकानंद युवा सम्राट इसलिए कहलाते हैं, उनका जितना जीवन का सार है कहीं ना कहीं युवाओं को समर्पित है। लेकिन अफसोस विवेकानंद का वह युवा, देश उत्थान के लिए नहीं बल्कि देश को गर्क में डालने के लिए, परिवार घर को गर्क में डालने के लिए, समाज को को गर्क में डालने के लिए कार्य कर रहा है। समझ नहीं आता जो देश अशिक्षित का थे, भुखमरी, गरीबी, पिछड़ेपन से निकल कर आज इस मुकाम पर आया है उसका डंका सारी दुनिया में बज रहा है लेकिन उसका युवा किस ओर जा रहा है, यह विषय विचार करने योग्य है। आज के वर्तमान समय में युवाओं को रोजगार, नौकरी के लिए इतना अधिक दर दर भटकना नहीं पड़ता और ना ही उनके ऊपर इतनी पारिवारिक परेशानी है, जितनी स्वामी विवेकानंद जी ने देखी थी। 10 प्रति माह की नौकरी नहीं मिली उन्हें। दिन-रात बिना भूख-प्यास के बिना नौकरी के लिए भटका करे थे, आप हम कल्पना तो करें की अब अपने आप को कहां पाते हैं। आप खुद ही विचार कर सकते हैं जो व्यक्ति उस समय में बीए कर चुका था, उच्च शिक्षित, समझदार,कुशल,ज्ञान की खदान था बावजूद इसके नौकरी का ना मिलना या यूं कहें काम का ना होना था। 21 साल की आयु में सिर पर पिता का साया ना होना, माँ, भाई, बहनों की जिम्मेदारी खुद के कंधों पर होना, इसी बीच कर्जदारों का पैसा मांगना, साथ ही घर में अनाज, भोजन,बस्त्र का न होना आप सोचिए खुद कल्पना करिए, विचार करिए आपने और उन में कितना अंतर है। इन विषम परिस्थितियों में भी अपने विवेक, अपनी ईमानदारी को ना डगमगाना। कितना बड़ा व्यक्तित्व था और आज हमारे माता पिता हमें पढ़ाने के लिए दिन रात मेहनत कर महंगे से महंगे स्कूल, कॉलेज में दाखिला कराकर अच्छे कपड़े, अच्छा भोजन खिलाकर हमें कुछ काबिल बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। क्या हम उनके संघर्ष के बदले कुछ उन्हें दे रहे हैं ? कल को पढ़, लिखकर, कुछ काबिल बन कर नौकरियां, रोजगार कर लेंगे, पैसे कमाने लगेंगे, नाम, रुपया, पैसा, दौलत सब हो जाएगी वह सुख संपत्ति किसके लिए है ? हमारे लिए या बूढ़े माता-पिता के लिए ? आज अगर वह हमारे लिए काम कर रहे हैं, हमारे लिए संघर्ष कर रहे हैं, हमारे उज्जवल भविष्य के लिए काम कर रहे हैं, हम इसे समझना चाहिए, इस संसार में आज के समय में सब कहीं बुरी आदतें, बुरी चीजें हैं, लेकिन जब तक आप के अंदर दृढ़ संकल्प है, कि यह नशा, बुरी चीजों का सेवन इत्यादि सब हम नहीं करेंगे, तो दुनिया की कितनी ही बड़ी ताकत क्यों ना आ जाए, वह आपको यह नहीं करा सकती। नशा बहुत बड़ी बीमारी है, जो हमारे उज्जवल भविष्य को और हमारे साथ-साथ हमारे परिवार के सपने को भी खत्म कर देती है। आज के दौर में नशे की अनेक कैटेगरियां तमाखू, गांजा, अफीम, शराब से लेकर हीरोइन इत्यादि है, जिनके अपने अपने प्रभाव एवं स्वाद होते हैं। जिनकी न्यूनतम मात्रा में ही एक अलग प्रतिक्रिया होती हैं। सेवनकर्ता अपने आप को तत्काल महाबलवान अनुभव करने लगता है, वह अपने आप को महाबुद्धिमान समझने लगता है, उसका दिमाग जमीन से उड़कर आसमान छूने लगता है। कई रंगीली सपने आने लगते है और कई ऐसे अनुभव करने लगता है जिनसे ऐसा प्रतीत होता है कि वह दुनिआ का सबसे बुद्धिमान और बलवान हो गया है। इस नशे के सहारे कल्पना को यथार्थता की अनुभूति में पलक झपकते डाल लेता है। न जाने इसके सेवन से खुली आँखों से सपने देखने लगता है, जो कभी पूरे हो ही नहीं सकते। नशा एक प्रकार का उबाल उत्पन्न करता है, जिस से छोटी वस्तु बड़ी के रूप में विकसित हुई प्रतीक होती है।
आशीष राय
संपादकीय सलाहकार जबलपुर दर्पण
एवं लेखक – स्वामी विवेकानंद ‘मेरे आदर्श मेरी यात्रा’