इस रोमांच से गुजरकर तो देखों
एक समय था कि बहुतायत में क्रिकेट प्रेमियों को आईपीएल का कान्सेप्ट समझ में नहीं आता था। उन्हें लगता था कि क्रिकेट में अगर हमें उस देश का ही नाम मालूम न हो कि कौन किसकी तरफ से खेल रहा हैं तो कहॉ मजा आयेगा। यह कुछ हद तक सही भी लग सकता है वरन् अभी-भी कईयों को लगता है। परंतु इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता हैं कि रोमांच तो रोमांच है और आईपीएल हैं तो उसने क्रिकेट को एक नई दिशा और नए लुक में इतने सालों में आकर्षित तो किया ही हैं तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। असल में नकारात्मकता वाली सोच को जब हम सकारात्मक दृष्टि से लेने की ओर सोचने लगते हैं तो उस आनंद की अनुभूति वाकई में महसूस करने लायक होती हैं। साथ ही एक अलग तरह का अहसांस भी कराती है। आज भी इसके विपक्ष में हम यह कह सकते हैं कि कौनसी टीम का हैं समझ ही नहीं आ रहा। हो सकता हैं कईयों को आज भी पचास ओवर के मैच ही पसंद हो। लेकिन बीस-बीस ओवर का मैच देखने में कोई बुराई भी तो नहीं। इसकी एक और विशेषता ये हैं कि इसमें आप पूरे विश्व को समाया हुआ देखते हैं। कौन अपना और कौन पराया, इन सबसे परे हटकर उस खिलाड़ी की प्रशंसा, मेहनत और सम्मान में आप खड़े होते है। इसे आप वैश्विक प्रेम की संज्ञा भी दे सकते हैं।
हम अपने यंगस्टर बच्चों से पूछते हैं-‘क्यों, बेटा ये खिलाड़ी कौनसी टीम का है, जिसने इतने कम बॉल में इतने ज्यादा रन बनाये।‘ या ‘ये कौन बॉलर है जिसने इतने कम ओवरों या गेंदों में इतने कम रन दिये।‘ये शब्द हमारी उत्सुकता और खेल के प्रति आकर्षण को बढ़ाते हैं। इसके अलावा हमारी रूचियों में इजाफा भी करते है। तब लगता हैं हॉ, देखना चाहिये। मैं तो कहता हूँ जरूर देखना चाहिये। एक ओवर में पाँच छक्के लगते देखने का आनंद व्यक्त नहीं किया जा सकता। अरे, सुपर ओवर जो अब तक दो बार हो चुके है। उसके रोमांच की तो बात ही क्या? सचमुच, ऐसे दिल धड़काऊ मैच होते है कि कुर्सी से चिपककर बैठ जाओ। कमाल की बात तो यह हैं कि बिन दर्शकों के हो रहें इन मैचों में ऐसा कतई महसूस नहीं हो रहा है कि दर्शक नहीं है। टैक्नोलॉजी ने इन मैचों का पूरा खाका ही बदलकर रख दिया है। बिना दर्शकों के दर्शकों की आवाज सुनने में भी आनंद आ रहा है। बाउण्ड्री के बाहर कूदकर खिलाड़ी कैच ले रहा है और गिरने से पहले बॉल दूसरे खिलाड़ी के हाथ में पकड़ा रहा है। ये रोमांच नहीं तो और क्या हैं? इस कोरोना काल में जो स्थिति आमजन की हो रही है वह तो त्रासद हैं ही, उससे इनकार नहीं किया जा सकता। लोग महीनों से घर पर बैठे है। तो फिर कुछ क्षण या कुछ घंटे इसके साथ बिता लो और स्वस्फूर्त हो जाओ तो कोई हर्ज भी नहीं है। जीवन तो परेशानियों का अथाह सागर है। तब कुछ खुशी और आनंदित होने के क्षणों को क्यों न किसी विकेट की तरह कैच कर लें। इस महामारी में जहां कुछ खेल आयोजनों का प्रारंभ होना संभव ही नहीं था। वहीं भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने आईपीएल कराने का जोखिम उठाकर, खेल विशेषकर क्रिकेट को एक नया जीवनदान देने का यत्न किया है। उसकी जितनी प्रशंसा की जाये कम है। खेलों की दुनिया में ये ताजी और शुद्ध हवा का झोंका भी इसे आप कह सकते है।
यदि हम पीछे मुडकर देखे तो वर्ष 2008 में जब इंडियन प्रीमियर लीग यानि आईपीएल की शुरुआत हुई थी तो इसे एक जबर्दस्त अनोखे प्रयोग के फौरीतौर पर देखा गया था। परंतु इस टूर्नामेंट ने पहले ही सत्र में जता दिया था कि यंगस्टर्स के लिए हीरो बनने का चांस भी इसने ही दिया है। इसका सबसे सकारात्मक पहलू यह हैं कि विश्व क्रिकेट में अपनी दमदार ही नहीं बल्कि शानदार इंन्ट्री मारने का यह सबसे सशक्त माध्यम बन चुका है। अगर अवसरों की बात करें तो आईपीएल के माध्यम से कितने ही युवा भारतीय क्रिकेटरों को न केवल पहचान मिली। साथ ही साथ उनके लिए नए रास्ते में भी खुलते गए। इनमें रविंद्र जडेजा, रविचंद्रन अश्विन, जसप्रीत बुमराह, यजुवेंद्र चहल और कुलदीप यादव जैसे प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के लिए राष्ट्रीय टीम में प्रवेश के रास्ते भी खुल गए। अगर हम यह कहें कि ये यंगस्टर खिलाड़ियों के लिए अवसरों का महाकुंभ है तो कोई अतिश्योक्ति न होगी।
अब तक कुछ ही युवा खिलाड़ी अपनी छाप छोड़ने में सफल होते थे। लेकिन इस बार मयंक अग्रवाल, शुभमन गिल, राहुल तेवतिया, देवदत्त पडिकल, ईशान किशन, रवि बिश्नोई, संजू सैमसन, अक्षर पटेल, पृथ्वी शाह, श्रेयस अय्यर, शिवम मावी, अमित मिश्रा, कमलेश नागरकोटी, राहुल चहर, शिवम दुबे, पवन नेगी, सूर्यकुमार यादव, राशिद खान, कुणाल पाण्ड्या, हार्दिक पाण्ड्या, पोलार्ड, अब्दुल समद, रितुराज गायकवाड, नवदीप सैनी और शेल्डन कॉट्रल जैसे नये खिलाड़ी उभरकर सामने आये हैं। शेल्डन कॉट्रल का स्टाईल आप देखेंगे तो एक पल को देखते ही रह जाएंगे। जब वे मैदान पर किसी बल्लेबाज का विकेट लेते हैं तब उनका सेल्यूट कर खड़े होने का स्टाईल देखकर मजा ही नहीं आएगा वरन् आपके मन में उनके प्रति एक सम्मान का भाव भी जागृत होगा। हाल ही में इशान किशन जब 99 पर खेल रहे थे तब हजारों हाथ उनकी सेंचुरी के लिये उठे होंगे। वे जब 99 पर छक्का मारने के प्रयास में आउट हो गए तब उन्हें स्वयं पर खूब गुस्सा आया। उन्होंने स्वयं को मैदान से बल्ला लेकर आते हुए चपत भी लगाई। इससे भी उनके प्रति आम दर्शकों में भावनाओं का ज्वार उमडा उसे महसूस किया जा सकता है। उनकी आँखों से बहते हुए आंसूओं को सबने देखा और सहानुभूति भी जागृत हुई। तब ये अफसोस जरूर हुआ-‘अरे, यार इसकी सेंचुरी बन जाती तो कितना अच्छा होता।‘ आईपीएल के हर मैच में आप देखेंगे कि मैच दर मैच कोई न कोई ऐसा क्रिकेट खिलाड़ी उभरकर आ रहा है जो अपने लिए घर में बैठे दर्शकों से ‘वाह-वाह‘ और ‘क्या? खेलता हैं यार‘ जैसे शब्द निकलवाने को उत्सुक कर देता है। वरन् उस खिलाड़ी का नाम हमेशा के लिए उसके मन मस्तिष्क में एक स्थान अवश्य बना लेता हैं। तो क्यों इसे ‘मिस‘ करें, आओ कम से कम एक बार तो देख ही लें। बाद में ऐसा न लगे अरें, देख लेना चाहिये था। देखा होता तो अच्छा होता। ये आलेख लिखे जाने तक मुम्बई इंडियंस और किंग्स इलेवन पंजाब का मैच चल रहा था। जिसमें रोहित शर्मा का ग्लैन मैक्सवेल ने क्या जबर्दस्त कैच लिया है वह देखते ही बनता है। वा..ह। इस पर अर्ज़ किया हैं-
मालूम न था तेरी दीवानगी का ये आलम है।
इतने सालों तुझसे महरुम रहें उसका गम है।
-संजय एम. तराणेकर