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नर्मदा दर्शन और स्नान से फल की प्राप्ति होती हैः नीलू महाराज
वरदान आश्रम अंजनिया के यज्ञाचार्य धर्माचार्य कथावाचक पं. नीलू महाराज ने बताया कि मान्यताओं के अनुसार गंगा सप्तमी को संसार की समस्त बावनगंगा, वेनगंगा, रामगंगा, अलक नंदा, पिंडरगंगा आदि इस दिन नर्मदा से मिलने आती हैं। इस दिन नर्मदा का दर्शन और स्नान करने से अपूर्व फल की प्राप्ति होती है। संत जन ऐसा कहते हैं कि जो लोग कार्य कारण वह अपने लोगों की अस्थियां गंगा तक नहीं ले जा पाते ऐसे लोग यदि गंगा सप्तमी को अस्थि नर्मदा में विसर्जित कर दें तो गंगा में विसर्जित करने का फल मिलता है। शास्त्रानुसार गंगा में स्नान करने से नर्मदा का दर्शन करने से और क्षिप्रा का आतुरकाल में केवल नाम लेने से मुक्ति मिल जाती है। उन्होंने नागरिकों से अपील की है कि कोविड-19 के कारण और प्रशासनिक प्रतिबंध एवं स्वयं की रक्षार्थ नर्मदा स्नान के लिए ना जावें। नर्मदा या गंगाजल स्नान पात्र वाले जल में मिलाकर भावमय स्नान कर लेवें। बता दें कि राजा सगर ने तपस्या से साठ हजार पुत्रों की प्राप्ति की। एक दिन राजा सगर ने देवलोक पर विजय प्राप्त करने के लिये एक यज्ञ किया। यज्ञ के लिये घोड़ा आवश्यक था जो ईष्र्यालु इंद्र ने चुरा लिया था। सगर ने अपने सारे पुत्रों को घोड़े की खोज में भेज दिया अंत में उन्हें घोड़ा पाताल लोक में मिला जो एक ऋषि के समीप बंधा था। सगर के पुत्रों ने यह सोच कर कि ऋषि ही घोड़े के गायब होने की वजह हैं उन्होंने ऋषि का अपमान किया। तपस्या में लीन ऋषि ने हजारों वर्ष बाद अपनी आँखें खोली और उनके क्रोध से सगर के सभी साठ हजार पुत्र जलकर वहीं भस्म हो गये। सगर के पुत्रो की आत्माएँ भूत बनकर विचरने लगे क्योंकि उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया था। सगर के पुत्र अंशुमान ने आत्माओं की मुक्ति का असफल प्रयास किया और बाद में अंशुमान के पुत्र दिलीप ने भी भगीरथ राजा दिलीप की दूसरी पत्नी के पुत्र थे। उन्होंने अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार किया। उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रण किया जिससे उनके संस्कार की राख गंगाजल में प्रवाह कर भटकती आत्माएं स्वर्ग में जा सकें।