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पर्यूषण पर्व का उत्तम क्षमा एवं मार्दव धर्म

आलेख : आशीष जैन (उप संपादक) दैनिक जबलपुर दर्पण

संपूर्ण जैन समाज के लिए दसलक्षण पर्व का विशेष महत्व है। सर्वसामान्य पर्यूषण पर्व के नाम से जानता है। भादो मास की चतुर्दशी से प्रारंभ होने वाला दस दिनों का यह पर्व बहुत महत्वपूर्ण पर्व होता है। दस दिनों को दस धर्म में विभाजित किया गया है इसमें प्रथम दिवस पहला धर्म कहलाता है उत्तम क्षमा। संसार में प्रत्येक मानव प्राणी के लिए क्षमा रूपी शास्त्र इतना आवश्यक है कि जिनके पास यह क्षमा नहीं होती वह मनुष्य संसार में अपने इष्ट कार्य की सिद्धि नहीं कर सकता है। क्षमा यह आत्मा का धर्म है, इसलिए जो मानव अपना कल्याण चाहते हैं, उन्हें हमेशा इस भावना की रक्षा करनी चाहिए। क्षमावान् मनुष्य का इस लोक और परलोक में कोई शत्रु नहीं होता है। क्षमा ही सर्व धर्म का सार है। क्षमा ही सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र रूप आत्मा का मुख्य सच्चा भंडार है। सिर्फ इन्सानों के लिए ही नहीं, बल्कि हर एक इन्द्रिय से पांच इन्द्रिय जीवों के प्रति, भी ऐसा ही क्षमा-भाव रखते है। उत्तम क्षमा धर्म हमारी आत्मा को सही राह खोजने में और क्षमा को जीवन और व्यवहार में लाना सिखाता है। भाद्रमाह के सुद पंचमी से दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व शुरू होते हैं। यह पहला दिन होता है, इस दिन ऋषि पंचमी के रूप में भी मनाया जाता है। हम उनसे क्षमा मांगते हैं, जिनके साथ हमने बुरा व्यवहार किया हो और उन्हें क्षमा करते हैं, जिन्होंने हमारे साथ बुरा व्यवहार किया हो। सिर्फ इन्सानों के लिए ही नहीं। सम्यक दर्शन वो चीज है, जो आत्मा को कठोर तप त्याग की कुछ समय की यातना सहन करके परम आनंद मोक्ष को पाने का प्रथम मार्ग है।

पर्युषण महापर्व के द्वितीय दिवस को उत्तम मार्दव धर्म कहा जाता है इस दिवस जैन धर्म के अनुयाई नाशवंत चीजों को त्याग कर खुद को पहचान कर अपरिग्रह की ओर चलने का प्रयास करते हैं। धन, संपदा, ऐश्वर्य मनुष्य को अहंकारी और अभिमानी बना देता है ऐसा व्यक्ति दूसरों को छोटा और स्वयं को सर्वोच्च मानता है जबकि यह सब चीजें नाशवंत है। यह सब चीजें एक दिन आप को छोड़ देंगी या फिर आपको एक दिन जबरन इन चीजों को छोड़ना ही पड़ेगा। नाशवंत चीजों के पीछे भागने से बेहतर है कि अभिमान और परिग्रह सब बुरे कर्मों में बढ़ोतरी करते है जिनको छोड़ा जाये और सब से विनम्र भाव से पेश आए सब जीवों के प्रति मैत्री भाव रखें क्योंकि सभी जीवों को जीवन जीने का अधिकार है। अपने आप की सही वृत्ति को समझने का माध्यम है। क्योंकि सभी को एक न एक दिन जाना ही है तो फिर यह सब परिग्रहो का त्याग करें और बेहतर है। खुद को पहचानो और परिग्रहो का नाश करने के लिए खुदको तप, त्याग के साथ साधना रुपी भठठी में झोंक दो क्योंकि इनसे बचने का और परमशांति मोक्ष को पाने की साधना ही एकमात्र विकल्प है। सभी को उत्तम क्षमा एवं मार्दव धर्म की बहुत शुभकामनाएं। जय जिनेंद्र।

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