10 वीं शताब्दी में हुआ था कल्चुरी कालीन मंदिर का निर्माण
महाशिवरात्रि पर विशेष…
मान्यता:-
– पत्थर को पीसकर पिलाने से कुत्ते का ज़हर होता है कम
– आस्था का केंद्र बना है, ऋणमुक्तेश्वर मंदिर
– सैकड़ों की संख्या में पहुंचते हैं सैलानी, मिलती है ऋणों से मुक्ति
नंद किशोर ठाकुर डिंडोरी। जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर कुकर्रामठ गांव में स्थित कल्चुरी कालीन ऋणमुक्तेश्वर मंदिर में महाशिवरात्रि के मौके पर विशेष पूजा पाठ किया जाता है। पुरातत्व विभाग की मानें तो मंदिर का निर्माण 10 वीं 11 वीं शताब्दी में हुआ था, तत्कालीन कल्चुरी राजा कोकल्यदेव ने मंदिर का निर्माण कार्य करवाया था,मंदिर निर्माण के वर्षों बाद भी लोगों के लिए आस्था का केंद्र ऋणमुक्तेश्वर मंदिर बना हुआ है। ऐतिहासिक मंदिर को देखने हर रोज सैकड़ों सैलानियां पहुंचते हैं, मंदिर में चैत डिजाइन से दुर्लभ, सुसज्जित ढंग से डिजाइनों को देखकर सैलानी लुफ्त उठाते हैं,महाशिवरात्रि के मौके पर मंदिर में विशेष पूजा पाठ किया जाता है। जिले भर के दूर-दराज गांवों से बड़ी संख्या में लोग पहुंच कर विधि-विधान से पूजा पाठ करते हैं।
– कुत्ते और बंजारे की कहानी है प्रचलित
ऐतिहासिक ऋणमुक्तेश्वर मंदिर के अलग-अलग मानता है,भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा बताया गया है कि मंदिर का निर्माण 10वीं 11वीं शताब्दी में कल्चुरी राजा कोकल्यदेव के सहयोग से तत्कालीन गुरु शंकराचार्य ने ऋण से उऋण होने के लिए मंदिर का निर्माण करवाया था। तो वहीं जनश्रुति के अनुसार मंदिर का अस्तित्व एक कुत्ता और बंजारे से जुड़ा हुआ है।बंजारे के पास एक वफादार कुत्ता था, समय गुजरने के साथ बंजारे के पास पैसे की कमी हुई, पैसे की पूर्ति के लिए बंजारे ने एक साहूकार को अपनी कुत्ता गिरवी रखकर कुछ पैसे ले लिया, ओर पैसे कमाने बाहर चला गया। समय गुजरने के साथ ही साहूकार के घर चोरी हो गई,चोरों ने साहूकार की चुराई हुई कीमती सामानों को तालाब के अंदर चोरी का सामान छिपा दिया,यह सब साहूकार के पास गिरवी रखा वाफादार कुत्ता देखता रहा,सुबह साहूकार कि नींद खुलती ही धोती पकड़कर कुत्ता साहूकार को उसी तालाब में ले गया जहां साहूकार के बेशकीमती चोरी किए गए सामान तलाब मैं चोरों ने छिपाए थे।यह सब देखकर साहूकार बहुत खुश हुआ और कुत्ते को ऋण से मुक्त करते हुए वापस अपने मालिक के पास जाने को कहा, कुत्ते के गले में एक संदेश लिखकर भी साहूकार ने गले में बांध दिया था। कुत्ता जब वापस अपने मालिक बंजारे के पास जा रहा था, तभी बंजारा भी अपनी वफादार कुत्ते को साहूकार के पास से लेने आ रहा था, रास्ते में कुत्ते को देखकर बंजारे को क्रोध आ गया, उसने सोचा कि साहूकार को बिना बताए कुत्ता वापस आ रहा है,क्रोध में आकर बंजारे ने अपने फरसे से कुत्ते का गला काट दिया और कुत्ते की तुरंत मोत हो गई। बाद में बंजारे की नजर कुत्ते के गले में बांधी साहूकार की चिट्ठी पर पड़ी। बंजारे को संदेश पड़ कर बहुत दुख हुआ और पश्चाताप करने लगा।यह भी कहा गया कि बंजारा ने कुत्ते की याद मे मंदिर का निर्माण कार्य करवाया था।
– मंदिर के अलग-अलग मान्यताएं
ऐतिहासिक मंदिर के बारे कई अलग-अलग मानता है, मान्यता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान कुकर्रामठ गांव में मंदिर का निर्माण करवाया गया था, बताया जाता है कि मंदिर के आसपास अन्य सात मंदिर भी बनवाए गए थे, लेकिन समय गुजरने के साथ साथ छ अन्य मंदिरों का अस्तित्व तो नहीं बचा लेकिन केवल एक मंदिर है जिसका अस्तित्व आज भी दिखाई दे रहे हैं।
– कुत्ते के काटने का जहर होता है कम
मानता है कि ऐतिहासिक ऋणणमुक्तेश्वर मंदिर के पत्थर को पीसकर पिलाने से कुत्ते का जहर कम होता है,अगर किसी व्यक्ति को पागल कुत्ते ने काटा है तो ऋणमुक्तेश्वर मंदिर के पत्थर को घिसकर पिलाने से घायल का जहर कम हो जाता है।मंदिर में विधि विधान से पूजा पाठ करने से व्यक्ति को ऋणों से मुक्ति मिलती है एवं घरों में सुख समृद्धि आती है। दर्शन के लिए जिले भर से बड़ी संख्या में लोग पहुंचकर विधि विधान से पूजा पाठ करते हैं।
– पर्यटन स्थल अपेक्षा का शिकार
कुकर्रामठ ऋणमुक्तेश्वर मंदिर पर्यटन स्थल उपेक्षा का शिकार है, मंदिर की विकास,सजावट, स्वक्षता, पहुंच मार्ग, सांकेतिक बोर्ड सहित अन्य व्यवस्था अब तक नहीं की गई जिससे ऐतिहासिक मंदिर बेरंग नजर आता है। सफाई, सुरक्षा व्यवस्था सहित आदि के नाम पर पदस्थ कर्मचारियों द्वारा मनमानी की जाती है यही कारण है कि ऐतिहासिक मंदिर में अभी तक सुंदरीकरण दिखाई नहीं दे रहा।