संपादकीय/लेख/आलेख

लक्ष्मी के आत्मनिर्भर की कहानी, हमारे दर्पण की जुबानी।

जबलपुर दर्पण /आशीष राय संपादकीय सलाहकार।

रुकावटें आती है सफलता की राहों में, ये कौन नहीं जानता।
फिर भी वह मंज़िल पा ही लेता है, जो हार नहीं मानता।

सफलता किसे अच्छी नही लगती है और लोग सफल होने के लिए रात दिन मेहनत भी करते है ऐसे में जिनके इरादे और हौसले बुलंद हो तो निश्चित ही वे लोग अपने लक्ष्य को प्राप्त करते है और सबके लिए सफलता की एक नई मिशाल पेश करते है। ऐसी ही एक मिशाल नरसिंहपुर जिले के सांईखेड़ा विकासखंड के ग्राम बोदरी की लक्ष्मी कहार ने पेश की। शासन प्रशासन की योजनाएँ तो बहुत है पर जिनका जमीनी पटल पर क्रियावंत होना कही न कही जिला प्रशासन के नेतृत्व क्षमता एवं इच्छता शक्ति पर निर्भर करता है। उसी का उदाहरण एवं समाज में एक नई मिशाल के रूप में लक्ष्मी कहार उभर कर आयी है। जो आज अपने नाम के अनुरूप, अपनी कार्य कुशलता से आत्मनिर्भर हो चली है।
गौरतलब है कि अपना घर चलाने के लिए लक्ष्मी कहार पहले अपने पति के साथ मिलकर सादी सिलाई मशीन से सिलाई का कार्य करती थी। पुराने मॉडल की मशीन होने के कारण वे समय पर काम पूरा नहीं कर पाती थी, इससे उनकी आमदनी कम होती थी। इतनी कम आमदनी में उन्हें घर का खर्च चलाना और बच्चों की पढ़ाई कराना बहुत कठिन हो रहा था। ऐसे में वे आजीविका मिशन के स्वसहायता समूह से जुड़ी। उन्होंने आधुनिक इलेक्ट्रानिक सिलाई मशीन और काज- बटन लगाने की मशीन खरीदी। इसके लिए उन्होंने सामुदायिक निवेश निधि और बैंक लिंकेज से 90 हजार रूपये का ऋण लिया। आधुनिक मशीनों से न केवल काम करने की गति बढ़ी, बल्कि सिलाई के कार्य में गुणवत्ता भी आई, इस कारण से उन्हें बाजार से अधिक कार्य मिलने लगा। लक्ष्मी कहार को सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों की ड्रेस सिलने का काम भी मिलने लगा। इस तरह लक्ष्मी की आज मासिक आमदनी बढ़कर 11 से 12 हजार रूपये हो गई।
लक्ष्मी कहार अपनी सफलता का श्रेय आजीविका मिशन और राज्य सरकार की योजनाओं को देती हैं। उन्होंने कहा कि स्वसहायता समूह से जुड़ने पर न केवल उनका आत्मविश्वास ही बढ़ा है, बल्कि अब वे आत्मनिर्भर भी हो गई हैं।

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