साहित्य दर्पण

अर्थ आजादी का आज बताना होगा

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तन का तन से मन का मन पर भाव सभी को समझाना होगा
गाँधी गीता दर्शन पर अर्थ आजादी का आज बताना होगा

कुछ लोग यहाँ पर स्वार्थ सिद्धि को हीं आजादी जाने है
आजादी के कारण कितने मृत्युवरण हुए नहीं पहचाने है

संघर्षों की आजादी को धर्म विमुख ने हीं बदनाम किया
राजनीति को हीं सब मान हमने ही ओछा सब काम किया

स्वराज जनता का निश्चय विश्व विजयी ध्येय बताना होगा
गाँधी गंगा ——————————————-
शिशओ की सिसकारी बच्चो की बेगारी पर रोना आता है
शास्त्री की खुददारी कलामकीईमानदारी कोक्यों भुला जाता है

आज उचित होगा मन सुमिरन करना वीरो का
उच्चादर्शो और आँसू का श्रमकण पढ़ना वीरो का

नय सृजन के लक्ष्य बिंदु पर नव छंद का चारण करना होगा
गाँधी गंगा ——————————————
हिंदुस्तान की मिट्टी मे आज भी खून की ख़ुशबू आती है
धरती अपनी उगले सोना आज भी बोली बोली जाती है

श्वेत नभ पर लाली भी तब हीं छायी होगी
जब धरा हमारी लाल रक्त से हीं नहायी होगी

विश्व शांति की चली हवाएं अब गुज़रा इतिहास पढ़ाना होगा
गाँधी गंगा ——————————————-
स्वतंत्रत स्वर सदा मुखर सच्चा लक्ष्य हमारा हो
धन्य सुभग स्वर्णिम सत्य अहिंसा संबल अपना हो

स्वर्ण दिवस अवसर पर शपथ उठाएंगे
प्रचंड भारत हो पुनः अखंड बनाएंगे

यश फैले क्षिति जल नभ पर ध्वज अपना फहराना होगा
गाँधी गंगा ————————————–

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कल्पना भदौरिया “स्वप्निल ”
लखनऊ
उत्तरप्रदेश

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