अकेला मन
मानव मन जब अकेला होता है
वीरान में भी वो मौन नहीं रहता है
खुद से खुद को सवाल वो करता है
खुद की सवाल का वो खुद ही ज़वाब देता है
अन्तरमन में दो मन बसता है
एक भलाई का पैरोकार होता है
एक सुकर्म करना चाहता है
पर दुर्जन मन प्रबल हो रोक जाता है
मानव जग में अकेला ही अवतरण लेता है
वापसी पर भी कोई साथ ना कभी जांता है
खुद रंगमंच का अभिनेता बन जीवन जीता है
खुद को ही खुद के लिये निर्दैशन. वो देता है
अन्तरमन में दुर्जन ही हर पल प्रबल होता है
सज्जन मन जब विरोध दर्ज करता है
जब भी मन सत्कर्म करना चाहता है
औंधे मुँह दुर्जन गिरा अट्टाहस करता है
मानव दुर्जन के हाथों का एक तुच्छ खिलौना है
दुर्जन के सामने खड़ा पुतला एक बौना है
बलशाली कोअक्सर दुर्जन ही हो जाना है
सज्जन की मन की बात जग में ना चलना है
उदय किशोर साह
मो० पो० जयपुर जिला ब्रॉका बिहार
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