साहित्य दर्पण

कुकर का अनुकरणीय स्वभाव

जबलपुर दर्पण। सभी का देखने व सोचने का तरीका अपना अलग – अलग होता है। ठीक इसी तरह हमारे जीवन में कुकर की तरह सम्यक सोच कीअनूठी बात भी है । यदि हमारी सकारात्मक सोच होगी तो उसे कोई न कोई सही से अच्छाई नजर आएगी और इसके विपरीत अगरहमारी नकारात्मक सोच होगी तो हमे बुराईयां ही बुराईयां नजर आएगी ।हमारा नजरिया सुख और खुशी तलाशने वाला होगा तो हमें वहीमिलेगा और हमारा नजरिया दुख वाला होगा तो दुख कभी भी पीछा नहीं छोड़ेगा । मन चंचल है उस पर लगाम कसना जरूरी है ।प्रत्येक वस्तु अनेक धर्म वाली है।जैसी हमारी दृष्टि होती है,वैसी सृष्टि नहीं होती है,वह एकरूप होती है।आवश्यकता है ,जो वस्तु का शुद्धस्वरूप है,हम उसको उसी रूप में जानें, हमारा मिथ्या आग्रह न हो ,हमारे नजरिये के प्रति।हम वस्तु के सभी गुणधर्म को इन्द्रिय चेतना केआधार पर न जान पाएं तो हमारी ज्ञानचेतना के विकास की कमी है,लेकिन हमारा आग्रह न हो कि हम जो देख रहे हैं, सोच रहे हैं,वो सहीहै और सामने वाले का चिंतन,नजरिया सही नहीं है।हम शांतचित्त व आनन्दित ,सही नजरिये को अपनाकर और दूसरे के नजरिये को भीसही समझकर रह सकते हैं।भगवान महावीर के अनेकांत दर्शन ने सही से जीवन कि सुंदर प्रेरणा देकर हमको पुनरावृति करवाई है।ऐसेही सजग और सजीव सोच हमारा आत्मकल्याण में सहयोगी बनती रहेगी।इन्हीं मंगल्लभावों के साथ ।

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