साहित्य दर्पण

कविता ॥ अहम ॥

जिनके मन में अहम का है . आया
लुट गई है उनकी तिलिस्म का साया
रावण कंस की इतिहास को पढ़ना
मन के अन्दर अहम ना कभी गढ़ना

अहम है बरबादी का एक बुरी बीज
मन में अंकुरित ना करना ये चीज
मन में जब जब आता है ये फितुर
मानव से मानवता हो जाता है दूर

अपने तन मन में जब अहम है लाना
अपने पैर में कुल्हाड़ी है। मारना
समाज से अलग पड़ जाओगे आप
मत करना अपने आप पर ये पाप

ये नासूर है इन्सानियत का एक दुश्मन
जन्म देता है कुकर्म का एक तन मन
बरबादी के राह पे ये ले कर चले जाता
मानव तब लुटकर जीवन भर पछताता

आओ मन से हम वहम को मिटा दें
जन जन में मानवता का पाठ पढ़ा दें
ये जग पानी का एक है बुलबुला
अहम सबको लेकर है जल में धुला

उदय किशोर साह
मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार

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