साहित्य दर्पण
मंजिल कहां मुश्किल हैं !
खुद ने खुद को जाना,
खुद ही को प्यार किया।
तुमने कहां पहचाना,
यों ही ऐतबार किया।
जलती है यह दुनिया,
हंसती है ये दुनिया।
अजीब है ये खामोशी,
न किसी ने इजहार किया।
दूरियां कायम हैं, इसलिए
उलझे-उलझे हमतुम हैं।
एकदूजे के ख्वाबों में,
हर रोज मिले हमतुम हैं।
खुद ने खुद को जाना,
खुद ही को प्यार किया।
तुमने कहां पहचाना,
यों ही ऐतबार किया।
बातें हैं अभी अधूरी,
मसले भी गुमसुम हैं।
आओ मिल बैठें,
मंजिल कहां मुश्किल हैं।।
मदन वर्मा ” माणिक “