धर्मशास्त्र राष्ट्रीय विधि विद्यालय के छात्र ने चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया को पत्र लिखा
नई दिल्ली। धर्मशास्त्र राष्ट्रीय विधि विश्विद्यालय के में पांच वर्षीय विधि कार्यक्रम के तृतीय वर्ष के विधि छात्र विख्यात माहेश्वरी, ने माननीय चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया श्रीमान डी.वाई. चंद्रचूड़ और सेक्रेटरी जनरल श्रीमान अतुल एम. कुर्डेकर महोदय को पत्र लिखकर संबोधित किया, जिसमें उन्होंने पूरे देश के सभी न्यायिक संस्थाओं में ए4 पेपर के एक ही प्रकार के उपयोग की आवश्यकता पर जोर दिया है, जिससे वातावरण और कानूनी लागत का बड़ा बचाव हो सकेगा। पत्र यह भी बताता है कि ए4 पेपर, मार्जिन, फॉन्ट स्टाइल, फॉन्ट साइज, लाइन स्पेसिंग और अन्य स्वरूपण आवश्यकताओं के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के सर्कुलर दिनांक 14 जनवरी 2020 और 5 मार्च 2020 (एफ.नं. 01/जड़ी./2020) के अनुसार न्यायिक प्रणाली के लिए समरूपता लाने की आवश्यकता है।
यह पत्र पूर्व संपर्क का चिंतन करता है, जिसमें पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया श्रीमान रंजन गोगोई को एक पत्र के माध्यम से सामान्य जनता को वातावरणीय और आर्थिक बोझ से बचाने के लिए ए4 साइज पेपर का प्रयोग और पेपर के दोनो तरफ प्रिंट करने की सिफारिश की गई थी। वास्तविकता में इस सर्कुलर को विभिन्न उच्च न्यायालयों और जिला न्यायालयों में अनुमोदन करने में असमर्थता की बात की जा रही है। पत्र ने आंकड़े और तथ्य प्रस्तुत करके इंगित किया है कि फॉरमेटिंग स्टाइल्स में भिन्नता और एक मानक संगत दृष्टिकोण का अभाव न्यायिक प्रणाली की कुशलता पर प्रभाव डाल रहा है।
पत्र बताता है कि 25 उच्च न्यायालयों में से केवल 22 ने ए4 साइज पेपर का उपयोग करने का संज्ञान लिया है. जिसमे की विभिन्न न्यायल्यो के मानकों में एक रुपता नहीं दिखाई देती। इसमें से 21 उच्च न्यायालयों ने इसके संदर्भ में सर्कुलर/ सूचनाएँ/ आदेश प्रसारित किए हैं, न्यायिक, प्रशासनिक, या दोनों पक्षों के लिए। शेष न्यायालयों ने इसके लिए समय दिया है, या याचिका अभी तक लंबित है, या कोई परिवर्तन नहीं किया गया है, या ए4 साइज पेपर के अनिवार्य उपयोग के लिए याचिका को नकारात्मक जवाब मिला है (सन्दर्भ के लिए अनुछेद IV- पृष्ठ 21/84 पर देखें)। 21 उच्च न्यायालयों में से 13 ने सर्कुलर/ सूचनाएँ। आदेश जारी करके कागज के दोनों साइड प्रिंट करने को अनिवार्य किया है, 6 न्यायालयों ने एक तरफ़ा प्रिंटिंग को अनिवार्य किया, और बाकी न्यायल्यों ने कुछ नहीं कहा। यह असमानता फॉरमेटिंग स्टाइल्स और पेपर क्वॉलिटी में भी देखी जा सकती है, जिससे कानूनी पेशेवरों और सामान्य जनता के लिए चुनौतियां पैदा करती है। कुछ उच्च न्यायालयों ने ए4 साइज के कम से कम 75 जीएसएम गुणवत्ता के पेपर का उपयोग करने का विशेषाधिकार दिया है, कुछ ने कम से कम 80 जीएसएम की मांग की है, और बाकी ने कुछ नहीं कहा है (सन्दर्भ के लिए अनुछेद IV- पृष्ठ 22/84 पर देखें)। ये विसंगतिया भारतीय बार काउंसिल के लक्ष्य के साथ टकरा रहे हैं, जो कानूनी पेशेवर को मानक संगत युक्त करने का उद्देश्य रखता है।
ई-फाइलिंग में की जाने वाली सार्थक प्रगति की सहारना करते हुए छात्र न्यायाधीश महोदय चंद्रचूड़ से ए4 साइज पेपर के प्रचार एवं प्रसार हेतु ऑफलाइन प्रैक्टिस में एक समानुपातिक स्तर का निर्धारण करने का आग्रह करता है। पत्र माननीय चीफ जस्टिस श्रीमान चंद्रचूड़ से अनुरोध करता है कि सभी उच्च न्यायालय और जिला न्यायालयों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2020 में जारी की गई मार्गदर्शिकाओं का पूर्ण अनुसरण करने के लिए त्वरित आदेशित करें। यह पत्र एक पर्यावरणीय उद्देश्य को पूर्ण करने और न्यायिक प्रणाली में विचलितता का समाधान करने की महत्वपूर्ण समस्या पर प्रकाश डालता है।अंत में, इस पत्र द्वारा छात्र आशा करता है कि चीफ जस्टिस श्रीमान चंद्रचूड़ पत्र में अवलोकित प्रार्थना का संज्ञान लेकर न्यायिक प्रणाली में आवश्यक सुधारों से महत्वपूर्ण योगदान होगा, जिससे की बड़ी संख्या में अधिवक्ताओं एवं सामान्य जनता को लाभ प्राप्त होगा। छात्र ने मिस्टर अमन सिंह (प्रथम वर्ष विधि छात्र, डी. एन. एल. यू. मिस्टर आशुतो जगताप (पंचम वर्ष विधि छात्र, डी. एन. एल. यु) और मिस विभूति मित्तल (चतुर्थ वर्ष विधि छात्र, डी. एन. एल. यू.) के मूल्यवान योगदान के लिए आभार प्रकट किया।