श्रीवास्तव के मैनेजमेंट में टिका खनिज अमला
जबलपुर दर्पण शहडोल। खनिज संपदा और खनिज से जुड़े कारोबारियों व उससे अर्जित होने वाले अकूत रुपयों की कीमत किसी से छिपा नही है। शहडोल जिले में कोयला,रेत,पत्थर से जुड़े कारोबारी और उनकी आज की हैसियत गली बाजारों में चर्चित है। ऐसे ही एक कारोबारी हैं जो ग्वालियर से शहडोल जिले में आकर एक ब्यौहारी के पुराने रेत माफिया से हाँथ मिलाकर जिले में सबसे बड़े क्रेशर का निर्माण किया।जिसमें जंगल,सड़क,व अन्य हिस्सेदारी के विवादों का मंजर आज भी तय होता आ रहा है। अनुपम ने रखा था नींव संजय को आगे कर अखिलेश खोद रहे पानी।
ऐसा ही एक मामला शहडोल जिले के अंतिम छोर जयसिंहनगर और ब्यौहारी क्षेत्र का है जहां ढोलर में संचालित क्रेशर का है। जहां मानक मापदंडों के विपरीत पत्थरो की खुदाई जारी है। आलम यह है कि इस क्रेशर का नाम हमेशा सुर्खियों में रहा है। कभी मालिकाना हक विवाद तो निर्माणाधीन समय मे क्रेशर से लगे भूमि सीमा विवाद, पर पैसे की साख और राजनैतिक दमदारी ने सारे विवादों को किनारे कर क्रेशर को संचालित करने पर आमादा कर दिया।
सीमा विवाद और उत्खनन की चर्चा
क्रेशर जिस भूमि पर स्थित है उस भूमि पर मोहिनी गांव का सार्वजनिक मार्ग भी है जहाँ मार्ग में ही क्रेशर को स्थापित किया गया है पूर्व से बने मार्ग की दिशा को परिवर्तित कर दिया गया है मार्ग के आड़े आई एसडीओ ने भी जांच के पन्ने तय किये पर सब कुछ यूं ही मैनेजमेंट की भेंट चढ़कर सिमट गया सूत्रों और ग्रामीणों की मानें तो उक्त क्रेशर के कुछ हिस्सों में जंगल भूमि के मुनारे थे जिसे तोड़कर आज क्रेशर की एक बड़ी साख तैयार कर दी गई और सम्बंधित क्षेत्र से अकूत पत्थरों की खुदाई वैध-अवैध तौर पर निकाला जा रहा है
बिना अनुमति दगानी से दहलता है क्षेत्र
व्यापक पैमाने में संचालित इस क्रेशर में प्रायः दगानी के चीथड़ों से धरती दिल दहल जाता है सांथ ही आसपास लगे ग्रामीणों के झुग्गियां भी अपना अस्तित्व तलाशती हैं खनिज व राजस्व के नियम की बात करें तो क्रेशर में ब्लास्टिंग की अनुज्ञा बहुत कम ही मिलती है किंतु यहाँ उत्खनित पत्थर के भंडारण खत्म होने से पूर्व ही भण्डारण कर लिया जाता है जबकि नियमो की मानें तो इस भण्डारण खत्म होने के बाद ही दूसरा भण्डारण तैयार किया जाता है
सूत्रों की मानें तो पुराने खनिज अधिकारी से श्रीवास्तव का लेनदेन बड़ा तगड़ा था और इस अकूत खनिज सम्पदा का कुछ लाभांश का हिस्सा बकायदे महीनों में तय था किंतु अब दौर बदल चुका है और नए साहब आ गए हैं सब कुछ पुराने जमाने की तरह शायद न चले और क्रेशर में हो रहे अनिमितताओं की जांच शायद साहब करवा लें
जानकारों की मानें तो उक्त क्रेशर का मालिकाना हक किसी अनुपम के हांथो शुरू हुआ था पर अब श्रीवास्तव का गैर मालिकाना हक नए तरीके से शुरू हुआ है जो ग्वालियर के साहब के कानों में पूरा बात डालता है