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नर्मदा जयंती पर विशेष: पवित्रता और आध्यात्मिकता की पर्याय माँ नर्मदा

विकास ताम्रकार की खबर

अमरकंटक हमारी संस्कृति में जल को देवता और नदियों को मां की सर्वोच्च प्रतिष्ठा प्राप्त है। जल को जीवन की संज्ञा देकर उसके संरक्षण को अत्यधिक महत्व दिया गया है। मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी नदी नर्मदा सिर्फ एक नदी नहीं बल्कि एक सम्पूर्ण सभ्यता और संस्कृति है। इस दिव्य और रहस्यमयी नदी की महिमा वेदों तक ने गायी है। युगों-युगों से प्रदेश की माटी को अपने अमृत सलिल से सोना उपजाने योग्य बनाने और करोड़ों लोगों का प्यास बुझाने वाली इस पवित्र नदी को पूजते आए हैं। इस नदी के तट पर अनेक तीर्थ स्थल हैं, जहां सदा से साधकों ने तपस्या और भक्ति के परम तत्व का अनुभव किया। अनूपपुर जिले के पवित्र नगरी अमरकंटक मां नर्मदा का उद्गम स्थान है। नर्मदा नदी अमरकंटक से अपनी यात्रा शुरु करती है और अरब सागर में विलीन हो जाती है। नर्मदा नदी की पूजा हिन्दू धर्म के अनुयायियों के बीच अत्यधिक महत्व रखती है, क्योंकि यह शांति और समृद्धि लाती है। यह भक्तों को पवित्रता और आध्यात्मिकता प्राप्त करने में मदद करती है। स्कंध पुराण के अनुसार नर्मदा नदी हमेशा बाढ़ या किसी अन्य तबाही के दौरान स्थिर रही है। महर्षि मार्कण्डेय के अनुसार नर्मदा के तट पर लाखों तीर्थ हैं यह विश्‍व की एकमात्र नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है। महर्षि मार्कण्डेय, अगस्त्य, कपिल और कई अन्य ऋषि मुनि ने इस नदी के तट पर ध्यान किया है। 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक ओंकारेश्‍वर इसी नदी के तट पर स्थित है।

पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है। सरस्वती नदी में तीन दिन स्नान करने से यमुना नदी में सात दिन स्नान करने से और गंगा नदी में एक दिन स्नान करने से मनुष्य का पाप नष्ट हो जाता है, किन्तु नर्मदा नदी के केवल दर्शन से ही मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं। नर्मदा जी का उगम पर्वत पर होने से उन्हें मैकल कन्या भी कहा जाता है। भारत के पाँचवे क्रमांक की बड़ी नदी के रूप में नर्मदा जी का उल्लेख किया जाता है। नर्मदा जी एक मात्र ऐसी नदी है जो पूर्व से पश्चिम की ओर प्रभावित होती है, उनकी लम्बाई एक सहस्त्र 312 किलोमीटर है और वे गुजरात के भड़ोच में अरब सागर में मिलती हैं इस प्रकार यह पवित्र नदी मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात राज्यों से प्रवाहित होती है। नर्मदा नाम में ही गूढ़ अर्थ छिपा है। ‘नर्म’ अर्थात् आनंद तथा ‘दा’ अर्थात् प्रदान करने वाली नर्मदा अर्थात् सभी को जन्म-मृत्यु के चक्र से, बंधन से मुक्त कर शास्वत आनंद की प्राप्ति कराने वाली नर्मदा है। सतपुड़ा, विंध्याचल जैसे विषाल पर्वतों से अपनी राह बनाती हुई ‘‘रव-रव’’ की ध्वनि करती हुई जाने से उनका नामकरण रेवा भी है। नर्मदा जी की तीन प्रकार से परिक्रमा की जाती है।

  1. रुद्र परिक्रमा 2. जल हरि परिक्रमा एवं 3. हनुमान परिक्रमा। इनमें से जल हरि परिक्रमा एवं हनुमान परिक्रमा करना अत्यंत कठिन होने से बहुत अल्प श्रद्धालु ये परिक्रमाएं करते हैं। अधिकांष श्रद्धालु रुद परिक्रमा ही करते हैं। नर्मदा परिक्रमा की कालावधि कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वादषी से लेकर आषाढ़ शुक्ल दशमी तक होता है। आगे जाकर आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी (आषाढ़ी एकादशी) से लेकर कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी (कार्तिकी एकादशी) तक परिक्रमा बन्द होती है। क्योंकि वर्षा के कारण नर्मदा जी में बाढ़ आकर परिक्रमा का मार्ग बन्द हो जाता है। इसलिए इस कालावधि में अर्थात् चातुर्मास में अनेक परिक्रमावासी नर्मदा तट पर विद्यमान संतों के आश्रम में निवास कर कार्तिकी एकादशी के पश्‍चात पुनः परिक्रमा के लिए अग्रसर होते हैं। जिन श्रृद्धालुओं को पैदल चलकर परिक्रमा करना संभव नहीं होता, वह गाड़ी से भी परिक्रमा करते हैं। नर्मदा जी की पैदल परिक्रमा करते समय नर्मदा जी के अनेक रूप देखने के लिए मिलते हैं। कभी विशाल नदी क्षेत्र तो कभी शांति से प्रवाहित नर्मदा माता तो कभी धुआंधार (जोरों से गिरने वाला प्रवाह), तो कभी सात खड़कों से सप्त धाराओं से प्रवाहित नर्मदा माता दिखाई पड़ती हैं। नर्मदा परिक्रमा अनेक अनुभवों का कोष है। श्रद्धा एवं निष्ठा के साथ परिक्रमा करने वाले पात्रता के अनुसार उसे अनुभव प्राप्त होते हैं।

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