साहित्य दर्पण

यादें

एक समय था जो अक्सर,
बहुत याद आता है
कल्पनाओं में मेरा मन,
अक्सर खो जाता है
पड़ोस का घर भी जैसे,
अपना सा लगता था
मदद के लिए सबका हाथ,
अनायास ही बढ़ता था ।

जब गांव में खपरैल वाले,
घर मे रहा करते थे
उस समय घर कच्चे थे,
पर रिश्ते बड़े पक्के थे
मिट्टी के चूल्हे की बनी रोटी के,
स्वाद बड़े निराले थे
सिल पर पिसी चटनी से,
पेट भर खाना खाते थे।

एक तौलिया से घर के सब,
अपना काम चलाते थे
खुरदुरा पत्थर से घिसकर,
हम गोरे हो जाते थे
मिलों दूर चलकर,
सब स्कूल पढ़ने जाते थे
तार की गाड़ी बनाकर,
बड़े शान से चलाते थे।

जीवन का रस दोस्तों संग था,
मस्ती बड़ी निराली थी
सावन के रिमझिम में भीगना,
यादें बड़ी सुहानी थी
श्याम समय वह पहले जैसा,
गर फिर से आ जाता है
जीवन के हर सुख फीके,
गर फिर बचपन मिल जाता है।

रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

You cannot copy content of this page